प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ 2025, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक समागम माना जाता है, इस बार कई दर्दनाक हादसों का गवाह बना। इन घटनाओं ने न केवल प्रशासन की तैयारियों पर सवाल खड़े किए, बल्कि श्रद्धालुओं की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएँ भी उत्पन्न कर दी हैं।
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संगम में भगदड़: जब आस्था पर हाहाकार भारी पड़ा
मौनी अमावस्या के दिन करोड़ों श्रद्धालु संगम में पुण्य स्नान के लिए एकत्र हुए थे। लेकिन अचानक मची भगदड़ ने इस पावन अवसर को त्रासदी में बदल दिया। देखते ही देखते लोग एक-दूसरे के ऊपर गिरने लगे, कई लोगों की जान चली गई और सैकड़ों घायल हो गए।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, पुलिस और प्रशासन भीड़ नियंत्रण में पूरी तरह विफल रहा। चारों ओर चीख-पुकार मची थी, लेकिन मदद मिलने में देर हो रही थी। कुछ लोग अपनों को ढूंढते रहे, तो कुछ की आंखों के सामने ही उनके परिवार के सदस्य दम तोड़ते गए।
सिलेंडर विस्फोट: आग में स्वाहा हुए पंडाल
महाकुंभ मेले में एक बड़े शिविर में उस समय अफरा-तफरी मच गई जब एक सिलेंडर अचानक फट गया। आग इतनी भीषण थी कि कुछ ही मिनटों में कई टेंट जलकर राख हो गए। इस हादसे में कई लोग झुलस गए और कई की मौके पर ही मौत हो गई।
आग बुझाने के प्रयास जरूर किए गए, लेकिन भीड़भाड़ के कारण दमकल गाड़ियों को समय पर पहुंचने में मुश्किल हुई। प्रशासन का दावा था कि सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम थे, लेकिन हादसे ने इन दावों की पोल खोल दी।
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सड़क हादसों में बढ़ोतरी: थकान और जाम बने जानलेवा
महाकुंभ के दौरान श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के चलते यातायात व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई। सड़क पर कई किलोमीटर लंबा जाम लगने लगा, जिससे एंबुलेंस और जरूरी सेवाएं भी फंस गईं।
यात्रा की थकान और भीड़भाड़ के कारण सड़क हादसों में अचानक वृद्धि हुई। कई श्रद्धालु महाकुंभ से लौटते समय दुर्घटनाओं का शिकार हो गए। कई लोगों की जान चली गई, जबकि कई गंभीर रूप से घायल हुए।
प्रशासन पर सवाल: क्या सुरक्षा के दावे खोखले थे?
इन लगातार हो रही घटनाओं ने महाकुंभ की तैयारियों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या प्रशासन ने इतने बड़े आयोजन के लिए पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम किए थे? क्या भीड़ नियंत्रण के लिए सही रणनीति बनाई गई थी?
श्रद्धालुओं की जान बचाने के लिए अब प्रशासन को ठोस कदम उठाने होंगे। महाकुंभ जैसे भव्य आयोजन में सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण पहलू होना चाहिए, वरना यह आस्था का पर्व नहीं, बल्कि त्रासदी का मैदान बन जाएगा।
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निष्कर्ष:
महाकुंभ 2025 का यह अध्याय कई दर्दनाक यादें छोड़ गया। यह हादसे दिखाते हैं कि किसी भी बड़े आयोजन में सिर्फ श्रद्धालुओं की भीड़ जुटाना ही महत्वपूर्ण नहीं होता, बल्कि उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है। अगर प्रशासन ने पहले से बेहतर तैयारियां की होतीं, तो शायद ये घटनाएँ रोकी जा सकती थीं।
अब सवाल उठता है—क्या आने वाले आयोजनों में सुरक्षा के बेहतर इंतजाम होंगे या फिर हम ऐसी ही त्रासदियों को दोहराते रहेंगे?
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