एक अधूरी मोहब्बत

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एक अधूरी मोहब्बत


एक अधूरी मोहब्बत
गाँव के उस पुराने पीपल के पेड़ के नीचे बैठा राहुल, हाथ में एक पुरानी डायरी लिए, किसी खोए हुए ख्वाब को टकटकी लगाए देख रहा था। हर पन्ना पलटते ही उसकी आँखें नम हो जातीं, मानो हर शब्द उसकी धड़कनों का हिस्सा हो।

पहली मुलाकात

राहुल और नेहा की पहली मुलाकात कॉलेज में हुई थी। नेहा एक शांत और समझदार लड़की थी, जबकि राहुल चंचल और हंसमुख था। उनकी मुलाकात यूँ ही नहीं हुई थी, बल्कि किस्मत ने उन्हें मिलाने की ठानी थी। नेहा को किताबें पढ़ने का शौक था, और राहुल को कहानियाँ सुनाने का। धीरे-धीरे दोनों एक-दूसरे के करीब आने लगे। राहुल ने कभी खुलकर अपने दिल की बात नहीं कही, लेकिन नेहा की हर मुस्कान में वह अपनी दुनिया देखता था।

इज़हार और कसमकश

एक दिन, कॉलेज के आखिरी साल में, राहुल ने नेहा को एक खत लिखा। उसने अपने दिल की हर बात उसमें लिख दी। लेकिन नेहा ने वह खत पढ़ने के बाद कोई जवाब नहीं दिया। कुछ दिनों तक राहुल बेचैन रहा, लेकिन एक दिन नेहा खुद उसके पास आई और कहा,
"राहुल, प्यार सिर्फ महसूस करना काफी नहीं होता, इसे निभाने की हिम्मत भी चाहिए। और मेरे घरवाले कभी इस रिश्ते को नहीं अपनाएंगे।"

राहुल का दिल टूट गया, लेकिन वह जानता था कि नेहा सही कह रही थी।

बिछड़ने का दर्द

कॉलेज खत्म हुआ, और नेहा की शादी एक ऐसे इंसान से तय कर दी गई जिससे वह कभी प्यार नहीं कर सकती थी। राहुल को खबर मिली, लेकिन वह कुछ कर नहीं सकता था। शादी के दिन उसने खुद को अपने कमरे में बंद कर लिया। उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन होंठों पर एक फीकी मुस्कान थी।

"अगर वह खुश है, तो यही मेरी जीत है," राहुल ने खुद को समझाया।

वक़्त का मरहम या नया ज़ख्म?

समय बीतता गया। राहुल शहर छोड़कर चला गया और खुद को काम में झोंक दिया। उसने जिंदगी को एक नए सिरे से जीने की कोशिश की, लेकिन कहीं न कहीं, हर रात उसकी डायरी के पन्ने गीले हो जाते थे।

फिर एक दिन, उसे खबर मिली कि नेहा अब इस दुनिया में नहीं रही। उसकी शादी के बाद की जिंदगी खुशहाल नहीं थी। वह घुट-घुटकर जी रही थी और आखिरकार एक दिन उसकी आत्मा ने उसका साथ छोड़ दिया।

राहुल दौड़ता हुआ उस पुराने पीपल के पेड़ के नीचे पहुँचा, जहाँ उन्होंने कभी साथ बैठकर सपने देखे थे। उसके हाथ में वही डायरी थी, जिसमें उसने कभी नेहा के लिए लिखा था—

"हम साथ रहें या न रहें, मैं तुम्हें हमेशा अपने दिल में जिंदा रखूंगा..."

उस दिन राहुल ने पहली बार खुद से नफरत की। शायद अगर वह कुछ और कोशिश करता, अगर वह अपनी मोहब्बत के लिए दुनिया से लड़ता, तो नेहा आज जिंदा होती। लेकिन अब कुछ नहीं बदला जा सकता था।

पीपल की शाखाओं से एक पत्ता टूटकर राहुल की डायरी पर गिरा। वह मुस्कराया, लेकिन उसकी आँखों से आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे... एक अधूरी मोहब्बत की तरह।


दूसरी कहानी: बूढ़ी माँ की चिट्ठी

रामू अपने गांव का एक होनहार लड़का था। पढ़ाई में अच्छा था, इसलिए उसके पिता ने उसे शहर भेज दिया। रामू ने मेहनत की और एक बड़ी कंपनी में नौकरी पा ली। धीरे-धीरे उसकी दुनिया बदलती गई।

गाँव में उसकी बूढ़ी माँ, जिसे कभी वह अपनी दुनिया मानता था, अब उसके लिए बीते समय की बात हो गई थी। माँ का हर हफ्ते आने वाला खत अब महीनों में बदल गया, और रामू के जवाब धीरे-धीरे बंद हो गए।

आखिरी चिट्ठी

एक दिन, उसे गाँव से एक चिट्ठी मिली। यह उसकी माँ की आखिरी चिट्ठी थी—

"बेटा, मुझे मालूम है कि शहर की चकाचौंध में मैं फीकी पड़ गई हूँ। तुझे कोई शिकायत नहीं, बस एक बार आकर मिल जा। शायद यह आखिरी बार हो।"

रामू दौड़ता हुआ गाँव पहुँचा, लेकिन वहाँ सिर्फ माँ की बुझी हुई आँखें और ठंडी पड़ी देह मिली। उसने माँ के हाथ में अपनी ही पुरानी चिट्ठी देखी, जिसमें उसने कभी लिखा था—

"माँ, मैं जल्द आऊँगा।"

लेकिन वह कभी नहीं आया।

अब घर की दीवारों पर माँ की ममता की कहानियाँ थीं, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं था। रामू फूट-फूटकर रोया, लेकिन माँ अब कुछ नहीं कह सकती थी। वह चिट्ठी आज भी उसके पास थी, लेकिन अब माँ की गोद नहीं थी, जिसमें सिर रखकर वह सुकून पा सके।





तीसरी कहानी: टूटे सपने

अजय का सपना था कि वह एक मशहूर क्रिकेटर बने। बचपन से ही वह बैट-बॉल लेकर गली में खेलता था, और उसकी हर जीत में उसके पिता की आँखों की चमक बढ़ जाती थी।

लेकिन गरीबी के कारण उसके पिता के पास उसे क्रिकेट की ट्रेनिंग देने के पैसे नहीं थे। फिर भी अजय हार नहीं मानना चाहता था।

कदमों की बेड़ियाँ

एक दिन, उसे जिला स्तर के क्रिकेट ट्रायल का मौका मिला। वह सुबह-सुबह मैदान पर पहुँचा, लेकिन उसके फटे हुए जूते देखकर कोच ने उसे बाहर कर दिया।

"क्रिकेट पैसों से नहीं खेला जाता, जुनून से खेला जाता है," अजय ने कहा।

कोच ने हँसते हुए जवाब दिया,
"लेकिन पैसों के बिना तुम मैदान तक नहीं आ सकते।"

आखिरी उम्मीद

अजय ने हार नहीं मानी। उसने दिन-रात मेहनत की, और दो साल बाद फिर से ट्रायल के लिए पहुँचा। इस बार उसके पास अच्छे जूते थे, लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया। सेलेक्शन लिस्ट में उसका नाम नहीं था।

हारा हुआ अजय घर पहुँचा और अपने बैट को दीवार से टिका दिया। उसने अपने पिता को देखा, जो अब बूढ़े हो चुके थे।

"बेटा, सपने कभी मत छोड़ना," उनके कहने पर अजय मुस्कुराया, लेकिन अंदर से वह टूट चुका था।

वह जानता था कि हर सपना पूरा नहीं होता, और कुछ सपने गरीबी की चौखट पर दम तोड़ देते हैं।

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