रामू अपने गांव का एक होनहार लड़का था। पढ़ाई में अच्छा था, इसलिए उसके पिता ने उसे शहर भेज दिया। रामू ने मेहनत की और एक बड़ी कंपनी में नौकरी पा ली। धीरे-धीरे उसकी दुनिया बदलती गई।
गाँव में उसकी बूढ़ी माँ, जिसे कभी वह अपनी दुनिया मानता था, अब उसके लिए बीते समय की बात हो गई थी। माँ का हर हफ्ते आने वाला खत अब महीनों में बदल गया, और रामू के जवाब धीरे-धीरे बंद हो गए।
आखिरी चिट्ठी
एक दिन, उसे गाँव से एक चिट्ठी मिली। यह उसकी माँ की आखिरी चिट्ठी थी—
"बेटा, मुझे मालूम है कि शहर की चकाचौंध में मैं फीकी पड़ गई हूँ। तुझे कोई शिकायत नहीं, बस एक बार आकर मिल जा। शायद यह आखिरी बार हो।"
रामू दौड़ता हुआ गाँव पहुँचा, लेकिन वहाँ सिर्फ माँ की बुझी हुई आँखें और ठंडी पड़ी देह मिली। उसने माँ के हाथ में अपनी ही पुरानी चिट्ठी देखी, जिसमें उसने कभी लिखा था—
"माँ, मैं जल्द आऊँगा।"
लेकिन वह कभी नहीं आया।
अब घर की दीवारों पर माँ की ममता की कहानियाँ थीं, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं था। रामू फूट-फूटकर रोया, लेकिन माँ अब कुछ नहीं कह सकती थी। वह चिट्ठी आज भी उसके पास थी, लेकिन अब माँ की गोद नहीं थी, जिसमें सिर रखकर वह सुकून पा सके।