अजय एक गरीब घर का लड़का था। उसके पिता की मौत बचपन में हो गई थी, और उसकी माँ ही उसकी दुनिया थी। माँ ने दिन-रात मेहनत करके उसे पढ़ाया-लिखाया। अजय पढ़ाई में होशियार था, और उसकी माँ का सपना था कि वह एक बड़ा अफसर बने।
जब अजय का सिलेक्शन एक बड़ी कंपनी में हो गया, तो वह शहर चला गया। नई दुनिया में खोकर वह माँ से फोन पर भी कम बात करने लगा। जब माँ का फोन आता, तो वह कहता—
"माँ, बहुत बिजी हूँ, बाद में बात करता हूँ!"
समय बीतता गया। माँ गाँव में अकेली रह गई। वह अक्सर अपने पड़ोसियों से कहती—
"मेरा बेटा बहुत बड़ा आदमी बन गया है, अब वह मुझे लेने आएगा!"
लेकिन अजय कभी नहीं आया।
एक दिन उसे गाँव से एक चिट्ठी मिली। वह खत उसकी माँ ने लिखा था—
"बेटा, तू बहुत बड़ा आदमी बन गया है। मुझे तुझ पर गर्व है। जब भी समय मिले, एक बार घर आ जाना, तेरा इंतजार रहेगा।"
अजय तुरंत घर के लिए निकला, लेकिन जब वह पहुँचा, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। माँ अपनी चारपाई पर हमेशा के लिए सो चुकी थी। उसके हाथ में वही चिट्ठी थी, जो उसने अजय को लिखी थी।
अजय फूट-फूट कर रोया, लेकिन अब माँ सुनने के लिए इस दुनिया में नहीं थी।